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उ॒क्षा स॑मु॒द्रो अ॑रु॒षः सु॑प॒र्णः पूर्व॑स्य॒ योनिं॑ पि॒तुरा वि॑वेश। मध्ये॑ दि॒वो निहि॑तः॒ पृश्नि॒रश्मा॒ वि च॑क्रमे॒ रज॑सस्पा॒त्यन्तौ॑ ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ukṣā samudro aruṣaḥ suparṇaḥ pūrvasya yonim pitur ā viveśa | madhye divo nihitaḥ pṛśnir aśmā vi cakrame rajasas pāty antau ||

पद पाठ

उ॒क्षा। स॒मु॒द्रः। अ॒रु॒षः। सु॒ऽप॒र्णः। पूर्व॑स्य। योनि॑म्। पि॒तुः। आ। वि॒वे॒श॒। मध्ये॑। दि॒वः। निऽहि॑तः। पृश्निः॑। अश्मा॑। वि। च॒क्र॒मे॒। रज॑सः। पा॒ति॒। अन्तौ॑ ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:47» मन्त्र:3 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:1» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या जानना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (समुद्रः) सागर (अरुषः) सुख को प्राप्त करानेवाला (सुपर्णः) सुन्दर पालन जिसके ऐसा और (दिवः) प्रकाश के (मध्ये) मध्य में (निहितः) स्थापित किया गया (पृश्निः) अन्तरिक्ष और (अश्मा) मेघ (उक्षा) सींचनेवाला (पूर्वस्य) पूर्ण आकाश आदि और (पितुः) पालन करनेवाले के (योनिम्) कारण को (आ, विवेश) सब प्रकार प्रविष्ट होता है और (रजसः) लोक में उत्पन्न हुए का (वि, चक्रमे) विशेष करके क्रमण करता और (अन्तौ) समीप में (पाति) रक्षा करता है, वह सब को जानने योग्य है ॥३॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! आप लोग कार्य्य और कारण को जानकर उनके संयोग से उत्पन्न हुए वस्तुओं को कार्य्यों में उपयुक्त करके अपने अभीष्ट की सिद्धि करें ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं विज्ञातव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यः समुद्रोऽरुषः सुपर्णो दिवो मध्ये निहितः पृश्निरश्मोक्षा पूर्वस्य पितुर्योनिमा विवेश रजसो वि चक्रमेऽन्तौ पाति स सर्वैर्वेदितव्यः ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उक्षा) सेचकः (समुद्रः) सागरः (अरुषः) सुखप्रापकः (सुपर्णः) शोभनानि पर्णानि पालनानि यस्य सः (पूर्वस्य) पूर्णस्याऽऽकाशादेः (योनिम्) कारणम् (पितुः) पालकस्य (आ) (विवेश) प्रविशति (मध्ये) (दिवः) प्रकाशस्य (निहितः) स्थापितः (पृश्निः) अन्तरिक्षम् (अश्मा) मेघः (वि) (चक्रमे) क्रमते (रजसः) लोकजातस्य (पाति) (अन्तौ) समीपे ॥३॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यूयं कार्य्यकारणे विज्ञाय तत्संयोगजन्यानि वस्तूनि कार्य्येषूपयुज्य स्वाभीष्टसिद्धिं सम्पादयत ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! तुम्ही कार्यकारण जाणून त्यांच्या संयोगाने उत्पन्न झालेल्या वस्तूंचा कार्यात उपयोग करून आपले इच्छित फल प्राप्त करा. ॥ ३ ॥